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मैं भरी हुई हूँ तुमसे तरबतर || 2021

Mai bhari hui hoo tumse || hindi poetry 2021


मैं भरी हुई हूँ तुमसे तरबतर || 2021

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 एक रोज उसने सारी कोशिशों से हार मानकर , 

सारे प्रयास पर लगाई हुई आबरू हारकर , 

घर के और हमारे प्यार की चक्की में पीसकर जैसे शरीर से आत्मा अलग 

करता हो !!


उस खेद में कहा कि किस्मत में लिखा मान लो । 

मान लेते है घरवालों की बात तुम अब कर लो शादी जहाँ तुम्हारे घरवाले 

कहते है ।


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 मेरी आँखें रो देती है जब तेरी यादे सामने से निकलती है , रोंगटे खड़े हो

 जाते है जब तेरी छुअन महसूस होती है 


तूने जो मेरे पेट पर अपना हाथ सहलाते हुए धीरे से मेरे दिल पर रख दिया था

 वो अहसास जाग उठता है , 


उस दिन मेरे बालों में डाला हुआ तेल आज फ़िर महकने लगता है !! 

तेरे कपड़ो से आती इतर की खुश्बू आज भी मेरे साँस से होकर पूरे बदन में

फैल जाती है 


एकबार बुखार में मेरे पैर दबाना याद करके आज भी पैर थिरकने लगते है

 मेरे कहने से चलती बस से उतरकर बारिश में भीगते हुए मेरा हाथ थाम लेना

 मेरी आँखो को आज भी भिगो देता है 


छोटी बच्ची की तरह मुझे कपड़े पहनाना , 

बीच बीच में मेरे बदन की खुश्बू की तारीफ करना आज भी मेरे चहरे पर शर्म 

की रेखाएं लाता है ,

भी तुम उतने मुझमें हो जितनी मै खुद में नहीं ।


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 कुछ दिखाई देता नहीं तेरे सिवा । आज दिखता है तो सिर्फ़ उठते वक्त तेरा अंगड़ाई लेना , 

आधी खुली आँखों से मुझे देखकर थोड़ा मुस्कुराते फ़िर सो जाना , 

मेरे वस्त्र विहीन बदन को अपने जिस्म से लिपटाकर छुपाना , मुझे दिखता है

 घंटो तक न सोए न जागने की अवस्था में एक ख्वाब की तरह मुझे देखते रहना


मुझे अपनी छाती पर लिए मेरी पसंद की बाते करना तुम सजी हुई अच्छी

 नहीं लगती बोलकर मेरे बालो को बिखेर देना दिखता है । 


मुझे दिखती है तेरी बंध बाँहो में आज़ादी । और तुम तुम कहते हो

कि मैं हमारी किस्मत में लिखा मान लूँ , 


मान लूँ घरवालो की बात और हो जाऊँ किसी ओर की ।

 कैसे ? कैसे हो जाऊँ किसीकी जब के मुझमें मैं हूं ही नहीं । 

मैं सनी हुई हुँ तुम्हारी दी हुई यादों से , तुम्हारे जज्बातों से लथपथ हूँ , 

भीगी हुई हूँ मेरी फ़िकर में बहाए हुए तुम्हारे आँसूओ से , मै मुझमे हूँ ही नहीं

 तुम ही तुम हो मुझमें ।


मै भरी हुई हूँ तुमसे तरबतर ।


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