वेंटीलेटर पर पड़ा मैं || Covid-19 Hindi Poetry 2021
वेंटीलेटर पर पड़ा मैं || Covid-19 Hindi Poetry 2021
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वेंटीलेटर पर पड़ा मैं जीवन के लिए लड़ाई लड़ रहा हु , मेरी रुह सिरहाने खड़ी है
मृत्यु को आलिंगन करने के लिए । दुनिया मेरा जीवन बचाने की कोशिश में हैं ।
शरीर के एक एक नस में सुई घुसी है । असहनीय पीड़ा हो रही है पर मैं मुंह खोलकर रो भी नहीं सकता मुंह में तो पहले ही ऑक्सीजन मास्क लगा हुआ हैं ।
सभी अंग काम करना बंद कर चुके हैं , क्षीण सी सांसें चल रही हैं मशीन के भरोसे । एक एक पल सदियों सा जान पड़ रहा । मृत्यु को शनैः शनैः निकट आते देख रहा हुँ ।
मैं बेहद डरा हुआ हूं , सौ सवाल ! कैसे होगी मौत ? क्या इस से भी ज्यादा पीड़ा होगी ? कैसे मैं अपना शरीर का त्याग करूंगा ? कब होगी ? ओह ! बहुत भयावह है मृत्यु को सम्मुख देखना ।
मृत्यु के डर ने मुझे अंदर से झकझोर कर रख दिया है ।
उफ्फ ! हताशा के बादल मेरे आंखों में उमड़ घुमड़ रहे , मैं फूट फूट कर रोना चाहता हुं अपनों से लिपट कर ।
हाथ उठाना चाहता हुं , आवाज़ देना चाहता हूं , चलना चाहता हुं , दौड़ना चाहता हुं ।
वेंटीलेटर पर पड़ा मैं जीवन के लिए लड़ाई लड़ रहा हु ..!!
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मेरी हजार गलतियां मेरे सामने है , सब सुधारना चाहता हुं । सहसा मेरी जिंदगी से सारी शिकायत खत्म हो जाती है
जीना चाहता हुं फ़िर से मेरे अपनों के साथ इस असहनीय पीड़ा के बावजूद भी ,
पर दो क्षण इस जीवन के लिए अनुराग जागता और मुझे फ़िर ये पीड़ा कमजोर कर देती , कैसे भी छुटकारा चाहता इस दर्द से ,
फ़िर मौत ही क्यों न हो पर ये डॉक्टरों की फ़ौज मुझे जाने भी नहीं दे रही मेरी गिनती की सांसों को लंबी कर रही हैं और कर रहे मेरी मृत्यु के दर्द को भी ।
मैं चीख कर कहना चाहता हुं , निकाल दो मुझे यहां से इस वेंटिलेटर से , पर विवशता , मैं हार जाता हुं , निढाल हो कर ।
वेंटीलेटर पर पड़ा मैं || Covid-19 Hindi Poetry 2021
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