तुम्हारी और मेरी मोहब्बत में फर्क है || Mohabbat Poetry
तुम्हारी और मेरी मोहब्बत में फर्क है !! Mohabbat Poetry
Mohobbat Poetry in Hindi
Mohabbat Poetry |
मैं जब काम से थक जाती हूँ तो उसकी आगोश में चली जाती हूँ ,
जब मन भारी होता है तो उसे अपने ऊपर लेकर सारा भार भूल जाती हूँ |
कभी वो मेरे ऊपर कभी मैं उसके ऊपर , कभी वो मेरे बालो से खेलता है कभी मैं उसके गालो को सहलाती ।
कभी वो मेरी छाती पर सर रखता है कभी मैं उसकी गोद में सो जाती ।
उसको अपने अंदर समाकर उसके तन को घोलकर उसे पूरा पी जाती हूँ ।
हां मैं मोहब्बत के उस रास्ते से गुजर जाती हूँ जिसकी खुद उसे भी भनक तक नहीं होती ।
जिस मोहब्बत की उसे कल्पना भी नही जो वो सोचता है
उससे कहीं ज्यादा प्यार मैं उसे करती हूँ , हर रोज करती हूँ ।
मैं जब हर शाम उसके साथ सोती हूँ उससे लिपटकर , तब ये सब ये सारा जहाँ मुझे बहुत आम लगता है ।
मैं भूल जाती हूँ मैं कौन हूँ ,
मेरी क्या मर्यादा है ,
मैं किस समाज की हूँ ,
मैं सही हूँ के गलत हूँ इसका मुझे न कोई भान होता है न कोई परवाह ।
मैं खयाल ही खयाल में उस में बेहद घुल जाती हूँ |
जैसे वो सचमुच मेरे पास हो वैसे उसके खयाल से ही फासला एक पल में मिटा देती हूँ ।
इतनी मोहब्बत के शायद वो मुझे असल में भी नही दे सकता उतनी मैं उससे छीन लेती हूँ ।
और वो है के नादन ! , प्यार करना भी नही जानता ।
⭐ ⭐ Mohobbat Poem in Hindi ⭐ ⭐
ये फासले को फासला समझकर रोता रहता है । नजदीकियो को इश्क कहता है ओर दूरी को तन्हाई ।
ओर मेने इश्क की सारी सीमाओं को तोड़ दिया ।
उसने सोचा भी नही इश्क के वो मुकाम तक पहुच गई ।
ओर मैं ईससे कहीं ज्यादा खुश हूँ |
ये मेरे अहसास इश्क से कम नहीं ।
और वो है के इश्क करता तो है लेकिन कर नहीं पाता ! "
अगर दूरी में ये अहसास कर पाते हो , उसकी यादों से मोहब्बत कर सकते हो ,
उसके बिना भी उससे प्यार कर सकते हो
तो तुम इश्क में कामिल हो ।
तुम्हारी मुहब्बत कोई नही छीन सकता ।
तुम्हारी और मेरी मोहब्बत में फर्क है
तुम्हारी और मेरी मोहब्बत में फर्क है !! Mohabbat Poetry
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